Friday 26 March 2021

 साहस न क्षमता है मुझमें, अनुकरण मैं उनका कर पाती,

शब्दों का तंत्र न बुना जाता, क्या अमर कृति मैं रच पाती !

न भक्ति मुझमें है इतनी, जो मैं उनकी मीरा बन पाती,

न प्रेम प्यास की ज्वाला है, जो मैं राधा बन जी पाती |

धधक रही है चिंगारी बस, जाने कब अगन बढ़ा देगी,

बन लक्ष्मीबाई रानी सी, करती  प्रहार मैं शब्दों के,

कुछ अमर कृति सी कर पाती |

नद सी चल-बहती नित ही, कलरव करती खग सा दिनभर, 

गुंजित करती मैं कुंज-कुंज, भर देती बयार में भीनी सुगंध |

कण-कण में तेरी गंध बसी, तुझमें ही राधा,वृंद बसी,

तेरी सत्ता देखी हरपल, जानी-परखी, समझी-बूझी,

अब लेकर कौन पहेली नई रचना करने की है सूझी ,

मन में उठता है द्वंद सदा, गढ़ने को शब्द-संसार नया     

रचने को शब्द नए-नए, फिर अवतार महादेवी लेगी |

नीरा भार्गव ‘नीर’

Sunday 26 May 2019

अतीत
मत याद करो बीते पल को , बीता पल होता दुखदायी |
सुखद अतीत को याद किया , मन में पीड़ा भर आयी |
नहीं आज वह पास हमारे, अन्तर्मन में कोहराम मचा ,
बैठे माथे पर हाथ धरे , वक्त तो जैसे वहीं थमा |
रोया मन, सोचा जो सुखद था, क्यों इतनी जल्दी बीत गया |
सुख-दुख, दिन-रात समान ही होते ,बारी-बारी से आते हैं ,
सब दिन नहीं होते एक समान, उठो, जागो हे मनु संतान !
करो कठिन कर्म, ले अतीत से सीख यही ,
जब सुख न रहा, तो दुख भी भला क्यों ठहरेगा |
भूत सुनहरा था यदि, तो उसे आज में बदल डालो ,
अगर जमीं थी कालुष उस पर, तो उसको भी धो डालो |
जो भी है, बस आज अभी है, इस पल को तुम जी डालो |
आज अभी का हर पल प्यारे, कल हो जाएगा अतीत ,
चाहे तो, हो उन्मुक्त, गगन को छू लो, चाहे तो रो कर जी लो ,
यादें सिर्फ बनेगा यह पल, जैसा चाहो, वैसा जी लो ,
मत याद करो अपने अतीत को, बस आज अभी खुलकर जी लो|
बस आज अभी खुलकर जी लो | बस आज अभी..................... |


नीरा भार्गव    

Friday 12 January 2018


 एक मीठी जंग धूप के संग
रवि की लालिमा पसरते ही ,
दरख्त के पत्तों के झुरमुट से
सुनहरी भोर ठुमकती आती
साथ गुनगुनी धूप लाती
इन्तजार होता मुझे भी उसका ,
वो धीरे से कानों में कहती  ,
लो ! मैं आ गई , जागो
उठो, लड़ो जंग, मेरे संग |
मैं मुस्कुराती,अंगडाई ले,रजाई हटाती  ,
पर ये क्या ! फिर खींचकर ओढ़ लेती |
धूप मुस्कुराती ,हौले से फुसफुसाती 
ऐसे ही लेटी रहोगी तो ,
हार जाओगी आज फिर एक बार” 
मैं खिलखिला,रजाई फेंक एक ओर,
 तैयार हो जाती लड़ने को जंग ,
गुनगुनातीमीठी धूप के संग |
पर ! धूप कहाँ रुकी है , कब ठहरी है ?
मुझे चिढ़ाते हुए मेरे कमरे से निकल 
आगे बढ़ जाती , मैं झटपट हो तैयार ,
करके श्रृंगार ,करती हूँ पीछा
उस मदमस्त धूप का ,ले संकल्प 
आज तो मैं लूँगी अल्पाहार 
महकती-चमकती धूप के संग |
ऐं ! ये क्या ? जब तक मैं लगाती
अल्पाहार की थाली,धूप चली आगे 
मुस्कराती ठेंगा मुझे दिखाती |
मैं भी कब थी हार मानने वाली 
खुली चुनौती उसे दे डाली
आना बच्चू कल  पछाड़ दूंगी
तुम्हें ! तुम देखना मेरे तेवर |
अगले दिन जीतने की उमंग लिए 
करने लगी धूप का इन्तजार |
तान सारे पर्दों को जो सोई
तो सुबह ताना मारती
पर्दों की संदो से झांककर धूप ने 
मुझे झकोरा "क्यों रह गई न सोती" ?
मैं उठ बैठी तह लगा रजाई की 
रख दी एक, ओर मुस्करा किया      
स्वागत अपनी नींद की दुश्मन का
हटा दिए सारे परदे और कहा 
झांकती क्यों हो? आओ बैठो मेरे संग,
ये तो सुहाना सफ़र है जिन्दगी का 
चलती रहेगी यूँ ही हमारी जंग ,
कभी तुम हारी तो कभी हम हारे ,
न तुम्हारे बिना जीवन किसी का ,
न हमारे बिना अस्तित्व तुम्हारा
तो चलो करती हूँ मैं आलिंगन तुम्हारा
धूप ने भी खिलखिलाकर बिना कसे तंज 
मनुहारी भाव से पसार भर लिया बाहों में
बोली बड़ी चतुर हो तुम 
बिना लड़े ही जीत गई जंग |

 नीरा भार्गव 




Friday 22 September 2017

                            राम और दीवाली 


आओ बच्चों तुम्हें सुनाए 
एक कहानी सच्ची,
अगर सुनोगे ध्यान से
तो तुम्हें लगेगी अच्छी।
                अयोध्या के राजा दशरथ 
                रानिया थीं तीन,
                तीनों रानियों में
                बहनों सा था प्यार,
चार हुए थे पुत्र उनके ,
राम-लक्ष्मण, भरत-शत्रुघ्न
चारों ही थे बड़े होनहार
था उनमें अटूट प्यार।
               करते-करते अद्भुत लीला 
               युवा हुए जब चारों भैया,
               देख-देख हरषाते दशरथ
               और हरषातीं तीनों मैया|
विश्वामित्र महामुनि करते थे
वन में यज्ञ ,यज्ञों को नष्ट
करते दानव ,दुखी हुए थे सब |
आया विचार, यज्ञों की रक्षा को  
              आया विचार मुनि के मन में 
              क्यों न ले आएँ लक्ष्मण-राम  |
              वे ही अब संवारेगें 
              हम सबके बिगड़े काम |
जाकर वन में ऋषि मुनियों को
किया राक्षसों से मुक्त ,
विश्वामित्र महामुनि संग
दोनों भाई जा पंहुचे जनकपुर
             जनकपुरी थी अनुपम नगरी 
             वहां आयोजन था बड़ा ही भारी 
             होना था स्वयंवर सीता का
             आये थे दिग्गज दुनिया भर से
मिले सिया को केवल रघुवर 
की प्रतिज्ञा विदेह ने विचारकर 
“शिव धनुष की जो चढ़ाये प्रत्यंचा”
जानकी होगी बस उसी की |
             सबने किया प्रयास बहुतेरा
             हिला न पाए उसे जरा सा ,
             उठो राम दी! आज्ञा गुरुवर ने 
             शीश झुका किया प्रणाम रघुवर ने ,
उठे राम , किया प्रणाम ,
चढ़ी प्रत्यंचा हुई टंकार
टूटा धनुष हुई रघुवर की
चारों ओर जय-जय कार |
            सीता संग अयोध्या 
            आये थे जब रघुवर,
            सुख पाए सब नारी-नर |
            बीत रहे थे सुख से दिन
सोचा दशरथ ने अब
राज्य की जिम्मेदारी से
कर लूँ स्वयं को मुक्त
संदेशा भेज ,बुलाये गुरुवर  
            लिया गया निर्णय तब,
            होंगे राजा  राम अब
            भई अब होंगे राजा राम 
फैल गई क्षण में खुश-खबरी
सजने लगी अयोध्या नगरी
ढ़ोल नगाड़े लगे खूब बजने
लगे लोग मंगल गीत गाने
             पर,यह क्या
                          हाय विधाता यह क्या ?
             मंथरा थी कैकयी की दासी,
राम अयोध्या के राजा हों,
यह बात उसे तनिक सुहायी,
मंथरा ने कैकयी बहकाई
वन में भेजे दिए  रघुराई।
            संग में लखन और सीता माई।
            फिर जो कुछ हुआ वन में,
उसे सुनो सब बड़े ध्यान से
सीताजी को ले गया रावण
खोज में भटके  दोनों भाई
खोज न पाए सीता माई 
                             हनुमान ने आकर ,
                             सुग्रीव संग मित्रता करवाई ,
                             जामवंत की आज्ञा पाकर
                             सागर पार गए हनुमान
ढ़ूंढ़ी सीता ,दिया संदेशा राम का
मत होना उदास हे !माता
करो भरोसा रघुवर का |
आएँगे शीघ्र ही अवधपति
                             देंगे अत्याचार से मुक्ति
                              सब वानरों संग मिलकर राम ने
                              सागर पर सेतु बनवाया   
               खूब हुई फिर मारा-मारी
 राम जी की वानर सेना,
 राक्षसों पर पड़ी थी भारी,
 वानरों की सहायता से ,
 विजयी हुए थे राम,
                           चौदह  वर्ष बिता वन में,
                अयोध्या वापस आए राम,
                           खुशियाँ मना रहे नर-नारी,
                सज गई अयोध्या सारी,
खूब बजे थे ढ़ोल-नगाड़े,
झूम रहे थे जन सारे,
गाती महिलाएँ मंगलाचार
करने स्वागत राम का सब थे तैयार |

               दिन था कार्तिक की अमावस्या का,
               तब से हम भारतवासी,
                              मिटा अंधकार कोने-कोने से 
               खूब सजाते दीयों की आली,
                              
आओ सब मिलकर सुख से ,
पुनः मनाए वही दीवाली
राजा राम, अयोध्या वाली
हर्ष-उल्लास,प्रेम,एकता वाली।

 नीरा भार्गव 






Monday 19 June 2017


                                                          वक्त से गुहार 

ऐ वक्त , काश ! तू ठहरता, जी लेता
वो सुनहरे पल।
काश ! तुझमें भी होते वो जज्बात ,
होता तुझमें भी वो अहसास ,
तू भी तड़पता उन लम्हों के लिए ,
जो खुशियाँ देते हैं भरपूर ,
मर-मरकर जीने के लिये |
आज भी  लौट जाता है मन वहीं ,
जहाँ से शुरू हुई जिन्दगानी ,
वो मुस्कराता बचपन ,वो अल्हड़ जवानी |
माँ के आँचल की वो शीतल छाँव ,
तो सदा याद दिलाती है, पिता की हर निशानी |
ऐ वक्त कर सकता है ,तो तू बस
 इतना ही कर एक बार, लौटा दे बचपन मेरा,
जिसमें भीनी मुस्कराहटें हों , खिलखिलाती हँसी हो ,
भाई-बहनों का प्यार-स्नेह प्रगाढ़ हो |
लौटा दे मुझको ,बस एक , बार वे दिन ,
जब पकड़ बांह पापा की घूमती थी वो मेले,
प्रफुल्लित होता था मन, अकड़कर चलती पापा के संग
न जाने कहाँ खो गया मेरा वो प्यारा सा बचपन
बिछुड़ गई वो सखियाँ भूल गए हमें सहोदर ।
ऐ वक्त पकड़ा दे मुझे वही थैला आज फिर एक बार,
जिसमें होती थी आम,केले जैसे मीठे फलों की बहार
न जाने क्या-क्या लाते थे पापा ,
भरकर थैला बाजार से हर बार |
हुई  कुछ बड़ी , तो छूटा बचपन ,
पर, न बदला पापा का वो  पहले वाला प्यार ,
जो कहते थे कभी मुझसे ,कि उठा करो जल्दी ,
पर विवाह के बाद मेरे , कहते थे माँ से ,
सोने दो उसको , तुम्हें ऐसी क्या है जल्दी ,
माँ चाहती थीं कि वे करे मुझसे मन की बातें
पापा चाहते थे कि नींद हो पूरी, स्वयं ही वो जागे |
ऐ वक्त क्या तेरे पास भी हैं ऐसे कुछ मीठे लम्हे
कुछ है तेरे पास ऐसा  , जिसके लिए तू तड़पे,
क्या  सोचता है ,क्यों  कुछ कहता नहीं तू
न है ऐसा कुछ भी  तेरे पास, न है  ऐसी धरोहर
तू तो है ही बड़ा निष्ठुर, इसलिए तेरे नाम भी हैं
बड़े ही अजीब से |
 काल तेरा ही  पर्याय है , है न!
जो समेट  लेता है , सब कुछ चाहे सुख हों या दुःख
लील जाता है सब कुछ मिटा देता है हस्ती ,
डुबो देता है नैया मधुर रिश्तों की
है न ! तू बड़ा निष्ठुर और बेरहम दिल ,
फिर भी यदि तुझमें है कोई जज्बात  ,
तो वापस लौटा दे मेरा बचपन ,
ऐ वक्त पहुंचा दे मुझे ,बस एक बार वहाँ
जहाँ थे मेरे माँ-पापा और सहोदर ,
खुशियों से गुलजार था  हमारा वो आँगन ,
ऐ वक्त बस एक बार , एक बार लौटा दे
लौटा दे ,मेरे वो हसीन दिन -पल

Wednesday 8 March 2017

गर्व से कहो हम हैं नारी

सोचो ,
भगवान की चित्रशाला में ,
यदि चित्रित न होती नारी ,
तो फीकी होती ये दुनिया सारी |
माना,
रंग  सजाते हैं, जीवन को ,
पर रंगों में मुस्कान ,
भरती है नारी |
पहाड़ प्रतीक है पुरुष का ,
सरल हो ,अविरल बहती है नारी
पोषण कर दुनिया को
जीवन देती है नारी |
आज की नारी !
करती है काम भारी-भारी
घर का हो या बाहर का  
दफ्तर का हो ,या विद्यालय का
चलानी हो बस ,या रेल
या उड़ाना हो हवाई जहाज
हर काम तत्परता से ,ईमानदारी से
करती है नारी ,
तभी तो धरा सी ,
क्षमाशील,सहनशील है नारी |
शत्रु विनाशिनी बन जाती है ,
जब सेना में भर्ती हो
देश सेवा करती है नारी |
खेतों में  पुरुषों संग ,
बराबर पसीना बहा ,
धरा पर लाती है हरियाली ,
बूझो तो ,ऐसी कौन सी है जगह 
जहाँ नहीं है नारी,
एक भी स्थान न ढूँढ़ पाओगे ,
जहाँ पुरुषों से आगे न निकली हो नारी
पुरुष है अधूरा नारी बिन ,
पर , नारी एक व्यक्तित्व है ,
अस्तित्व है ,काव्य है
जीवन है अविरल धारा है ,
नदी की भांति ,चट्टानों को तोड़ ,
स्वयं रास्ता बनाती,
आगे बढती जाती है नारी ,
सोचो ,
भगवान की चित्रशाला में ,
यदि न होती नारी तो ,
रंगहीन होती ये दुनिया सारी

गर्व करो और गर्व से कहो हम हैं नारी


Monday 6 February 2017

हिंदी टीचर
हिंदी टीचर बड़ी महान ,
देती सब विषयों का ज्ञान ,
ज्ञान कराती हैं भरपूर
देतीं जानकारी अनमोल |
परिचय होता अपनी संस्कृति से
भरता जाता ज्ञान कलश ,
मान-सम्मान करना सिखाती
जीने की कला वे बतातीं 
हर कसौटी पर खरी उतरतीं
मानवता का पथ दिखलाती |
हर दिन आतीं बड़े जोश से ,
बच्चे प्रतीक्षा करते मन से,
आज मिलेगी सीख अनोखी
माध्यम होगा किसी कथा का,
हो चाहे वो रामायण की ,
या चाहे हो कृष्ण जीवन से ,
गौतम बुद्ध की कथा सुनातीं ,
पंचतंत्र हम बच्चों को भाती
हर कहानी एक सीख दे जाती |
सारे त्यौहार उन्हीं से जीवित ,
हर्ष-उल्लास से खूब मनातीं
सबको स्वादिष्ट पकवान खिलातीं,
त्योहारों का कारण-उददेश्य बतातीं |
खुलकर जीने की राह दिखातीं

हम हैं तो हिंदी है ,
हिंदी है तो हम हैं
ऐसी हैं हमारी हिंदी मैम
गर्व से भरे इनके नयन
आकाश सा निर्मल ह्रदय है इनका ,
इनमें करते दर्शन ईश्वर का
साक्षात सरस्वती बसतीं इनमें
ह्रदय से हम करते नमन इन्हें
यह रचना है इन्हें समर्पित
रहे सदा आशीष, इनका हम पर |

यह कविता मेरी अपनी हिंदी अध्यापिका श्रीमती प्रभा गढ़वे को समर्पित है ,जिन्होंने मुझे विद्यालय में हिंदी भाषा का गहन अध्ययन कराया | आज मुझे हिंदी का जो ज्ञान है उन्हीं की देन है |
प्रणाम !